Info India News I पंच दिवसीय दीपोत्सव : संपूर्ण सार 2024
भोपाल। वर्ष 2024 में पंच दिवसीय दीपोत्सव का प्रारंभ 29 अक्टूबर मंगलवार से होगा। इस वर्ष दो अमावस्या होने के कारण पंच दिवसीय दीपोत्सव 6 दिन तक मनाया जाएगा।
29 अक्टूबर को धनंवतरी जयंती के साथ देवताओं के द्वारा निर्मित वर्ष का एकमात्र खरीददारी का महामुहूर्त भी रहेगा। धनवंतरी पूजा के साथ प्रदोष व्रत भी किया जाएगा।
30 अक्टूबर बुधवार को नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा। इसे रूप चतुर्दशी, छोटी दिवाली, दक्षिणी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन नरकासुर का वध भगवान श्रीकृष्णा जी के द्वारा किया गया था। शिव चतुर्दशी व्रत के साथ यम-काल पूजा की जाएगी। इस दिन दक्षिण दिशा में चतुर्मुखी दीपक जलाने से मृत्यु भय, संकट, पीड़ा से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन अमृत सिद्धि योग भी विद्यमान होगा।
31 अक्टूबर को दीपावली का त्योहार मनाया जाएगा। ज्योतिष मठ भोपाल के ज्योतिषाचार्य पं. विनोद गौतम ने बताया कि अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को उपराह्न 2.42 दिन से प्रारंभ होगी एवं लक्ष्मी पूजा प्रतिष्ठानों, कारखानों में प्रारंभ हो जाएगी। पश्चात देव स्थान, गृहस्थजन प्रदोषकाल सूर्यास्त के बाद दीपोत्सव मना सकेंगे। इस दिन लक्ष्मी-कुबेर पूजा के साथ कुलदेवता, पितृ देवता एवं वास्तु देवताओं के साथ पंचदेवों का पूजन करना लाभकारी माना गया है। प्रदोषकाल में मां लक्ष्मीजी के इस दिन प्रादुर्भाव के समय ईशान कोण एवं घर के बाहर दीपक लगाना शुभकारी होता है। महानिशाकाल में कुबेर के साथ भ्रमणरत महालक्ष्मीजी के लिए स्वच्छता, पवित्रता एवं दीपों की रोशनी से प्रसन्न किया जाता है।
1 नवंबर को उदयकालिक अमावस्या तिथि सायंकाल 4.30 तक ही रहेगी। यह स्नानदान देव पितृकार्य श्राद्ध अमावस्या के रूप में फलदायी मानी गई है। इस दिन सायंकाल से दीपोत्सव अनेक समाजजनों द्वारा प्रारंभ किया जाएगा। जिसे अहीर, यादव समाज प्राथमिकता के साथ गौवंश का रंग-रोगन करके प्रारंभ करते हैं। कई बार यह उत्सव 30 दिन तक का हो जाता है।
2 नवंबर को अन्नकूट, गोवर्धन पूजा, बलि पूजा, गौक्रीड़ा आदि उत्सव मनाए जाएंगे।
3 नवंबर रविवार के दिन भाई दूज का त्योहार होगा। इसके साथ चित्रगुप्त पूजा भी की जाएगी। इसे यमद्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार से इस वर्ष पंच दिवसीय दीपोत्सव 6 दिन तक मनाया जाएगा। चूंकि इस दौरान व्रत-पर्व एवं त्योहार मिश्रित रूप में रहेंगे। अत: यह उत्सव त्रिगुणात्मक फल देना वाला माना जाता है।
।। दीपावली पूजन मुहूर्त ।।
इस वर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या गुरुवार, दिनांक 31 अक्टूबर 2024 को दीपावली का शुभ पर्व है। दीपावली पूजन का मुख्यकाल प्रदोषकाल होता है जिसमें स्थिर लग्न की प्रधानता होती है तथा वृष, सिंह या कुंभ लग्न में दीपावली पूजन करना उत्तम माना गया है। इस दिन वृष लग्न सायं के 6 बजकर 37 मिनिट से रात्रि के 8 बजकर 33 मिनिट तक है। जो दीपावली पूजन के लिए उत्तम समय है। इसके पश्चात अर्धरात्रि में सिंह लग्न में रात्रि के 12 बजकर 59 मिनिट से रात्रि के 2 बजकर 33 मिनिट तक तथा कुंभ लग्न में भी दिन के 3 बजकर 22 मिनिट से दिन के 3 बजकर 32 मिनिट तक भी गणेश, कुबेर आदि दवेताओं का पूजन किया जा सकता है।
।। चौघडिय़ा मुहूर्त ।।
सायंकाल 4.30 से 6 बजे तक शुभ का चौघडिय़ा प्रतिष्ठान, कारखानों, दुकानों के पूजन हेतु शुभ है। पश्चात 6 से 730 तक अमृत का चौघडिय़ा प्रदोषकाल गौधूलि बेला में गृहस्थजन एवं देव स्थानों हेतु उत्तम फलकारी है। 7.30 से 9 बजे तक चर का चौघडिय़ा रहेगा। यह भी उत्तमफलकारी रहेगा। पश्चात महानिशाकाल में 12 से 1.30 तक लाभ का चौघडिय़ा सभी वर्गों के लिए फलदायी रहेगा। इस चौघडिय़ा में महानिशाकाल रात्रि में तांत्रिक लोग मंत्र सिद्धि कर लाभ की प्राप्ति कर सकेंगे।
विशेष – अमावस्या तिथि को दीपावली दीप पूजन करना श्रेष्ठ रहता है। अगर अमावस्या तिथि प्रदोषकाल से आधी रात तक उपलब्ध हो।
।। दीपावली निर्णय।।
अमावस्या प्रदोषकाल से अर्धरात्रि तक रहने वाली श्रेष्ठ मानी जाती है। ता. 1 नवंम्बर को अमावस्या तिथि प्रदोषकाल के समय समाप्त हो रही है, सूर्य को दीया नहीं दिखाया जाता, क्योंकि दीपोत्सव रात्रिकालीन पर्व है। जबकि पूर्व में 31 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोषकाल से रात्रि अंत तक मिल रही है, इसलिए दीपावली पर्व लक्ष्मी कुबेर पूजन 31 अक्टूबर गुरुवार के दिन किया जाना शा सम्मत है।
।। दीपावली श्री गणेश-लक्ष्मीजी पूजन सामग्री।।
धनिया, गुड़, रोली, इत्र, गंगा जल, सिंदूर, हल्दी पिसी हुई, कलश, चावल, धूप, श्रीफल, नारियल, दीप पंचामृत, दूध, दही, घृत शक्कर, शहद, कलावा, सप्तधान्य, सर्वोषधी, सप्तमृदा, पंचरत्न, पंचपल्लव, सूत्र, यज्ञोपवीत, केले के पत्ते, कपूर, पान, बंदनवार, चौकी, पंच पल्लव व आभूषण, पुष्प माला, ऋतु फल, नैवेद्य, श्री लक्षमी जी की प्रतिमा, गुलाल, तुलसी दल, अबीर, पंच मेवा, मिष्ठान, खीर, बतासा, दूर्वा, गौ का गोबर, लाल कपड़े की थैली, लक्ष्मीजी के व, आभूषण श्रंृगार, सामान, प्रसाद बांटने के लिए मिष्ठान, फल लाई चिरोंजी दाना आदि।
।। श्रीलक्ष्मी पूजन की विधि।।
सर्वप्रथम शुभ चौघडिय़ा स्थिरकाल में पूजा घर की पूर्व दिशा में ú महालक्ष्मै नम: पहले से लिखकर तैयार रखें। इस पंचाक्षरी लक्ष्मी मंत्र को संपूर्ण पूजा के दौरान स्मरण, उच्चारण करते रहें।
तीन चौकियां रखें पूर्व दिशा की ओर। बीच की चौकी पर महाँलक्ष्मी गणेश की मूतियां रखें। दक्षिण की ओर वाली चौकी पर अष्ट लक्ष्मी, अष्ट सिद्धि, कुबेर हेतु पान सुपाड़ी अक्षत पुष्प के पुंज में अलग-अलग स्थानों पर रखें।
चौकी-१ : इस चौकी में कलम, दवात आदि यांत्रिक वस्तुओं के साथ अचल संपत्तियों की रजिस्ट्रियां एवं मंगल कलश की स्थापना करें।
चौकी-२ : इस पीठ पर महाँलक्ष्मी, गणेशजी की प्रतिमा के साथ लक्ष्मीरूपी स्वर्ण मुद्राएं, नगदी प्रचलित रुपए आदि रखें।
चौकी-३ : इस चौकी में दसविधि लक्ष्मी एवं अष्टसिद्धियों के साथ कुबेर का आवाहन, पान सुपाड़ी एवं अक्षत रखकर १९ बार करें।
चौकी क्रमांक 1 – उत्तर की ओर की चौकी पर बहीखाता, कलम, दवात, नवीन, लाल थैली, एक पान पर सुपाड़ी अक्षत पुंज में गज प्रतीक स्थापित करें। आग्नेय कोण में घृत दीप जला दें। थाल में पूजन की सामग्री, लौटे में जल, पुष्प, पवित्री एवं कुशा रखें। पूर्वार्ध मुख आराधक उत्तराभि मुख आचार्य बैठे। सर्वप्रथम आराधक एवं सभी पूजन सामग्री को पवित्र करें। पैती पहन लेंं। आचमन, कलावा, तिलक के बाद अक्षत पुष्प देकर स्वस्ति वाचन मंगल मंत्र के साथ लक्ष्मी माता की आराधना एवं कुल देवताओं की आराधना करें। गौरी, गणेश का आवाहन कर महालक्ष्मी एवं अष्टसिद्धि का आवाहन करें। गणेश एवं महाँलक्ष्मीजी की पंचोपचार, षोडशोपचार पूजा करें। दशमहाँलक्ष्मी अष्ट सिद्धियों का पृथक-पृथक आवाहन एवं पंचोपचार करें
पं. विनोद गौतम
ज्योतिष मठ संस्थान
नेहरू नगर, भोपाल
मो. नं. 9827322068